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*जाने वाले कभी नहीं आते" जाने वालों की याद आती है.. विनम्र "श्रद्धांजलि" स्वर्गीय श्री रवि यादव* मुलताई:—सैय्यद हमीद अली........

 


इस फ़ानी दुनिया से जाना सभी को है? कोई भी जानदार अमर नहीं है? वक्त आगे बढ़ जाता है और धीरे-धीरे उनकी याद भी धुंधली होती जाती है। परंतु भगवान द्वारा प्रदत्त इस जीवन में ,कुछ बिरला इंसान ऐसे भी होते हैं, या उनके काम कुछ ऐसे होते हैं, जो कि उनके चले जाने के बाद भी वह हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहते हैं। इसीलिए तो किसी शायर ने क्या खूब लिखा है कि...(*जाने वाले कभी नहीं आते जाने वालों की याद आती है*)

ऐसे ही बिरले इंसानों में , पवित्र नगरी मुलताई की एक ऐसी शख्सियत थी रवि यादव? आज उनकी चौथी पुण्यतिथि पर, उन्हें उनके चाहने वाले उन्हें ,अपनी अश्रु पूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, उन्हें याद करते हैं। स्वर्गीय श्री रवि यादव नगर पालिका के अब तक के सबसे श्रेष्ठ नगर पालिका अध्यक्ष रहे। उनकी कार्य प्रणाली और लोकप्रियता को देखते हुए, एक अधिवक्ता होने के नाते, नगर के तमाम अधिवक्ताओं ने उन्हें अधिवक्ता संघ का अध्यक्ष भी चुना था। वे निडर, ईमानदार, आम गरीब जनता के हमदर्द, भारतीय जनता पार्टी के निष्ठावान, सांसद प्रतिनिधि के पद पर रहे । लालच, पदों की अकड़, राजनीति की गलत नीतियां उन्हें कभी विचलित नहीं कर सकी। वह हमेशा सच और सच्ची बात करते थे। जनता की सेवा ,गरीबों की मदद, और स्वच्छ राजनीति इंसानियत ,उनका पहला कर्तव्य था। निडर और ईमानदार इतने थे कि, बड़ी से बड़ी ताकत भी उन्हें डिगा नहीं सकी। अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष, नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष होते हुए, उन्होंने कई काम ऐसे किए हैं कि ,वे अपने काम के लिए नगर में हमेशा लोगों को याद किए जाएंगे।  उनके इस तरह  असमय  चले जाने के बाद, भारतीय जनता पार्टी में या अब तक नगर पालिका अध्यक्ष के रूप में कोई भी ऐसा  व्यक्ति  नहीं आया, जैसे वे थे ? राजनीति में भी जो उनका स्थान रिक्त हुआ है ,उसे शायद जिले का कोई भी नेता भर नहीं सकता? उनका स्थान हमेशा रिक्त ही माना जाएगा। उनके चले जाने के बाद में नगर की राजनीति भी बदली बदली सी हो गई है।और ऐसा लगता है कि ,अब नगर के  जनहित के मुद्दे उठाने वाला कोई बाकी नहीं रहा। नगर विकास का कोई भी मुद्दा हो, उसके लिए वे सदा एक चट्टान की तरह डटे रहते थे, शासन प्रशासन से भी उन्होंने कभी खौफ नहीं खाया। इतनी सारी खूबियां होने के बाद भी,  एक साधारण इंसान की तरह उनकी जीवन शैली थी। उनके चले जाने के बाद ऐसा लगता है कि, मां ताप्ती के पवित्र नगर को उनकी अभी बहुत आवश्यकता थी ?  उन्हें इस तरह असमय अपने चाहने वालों को अलविदा नहीं कहना था। 1 दिसंबर का वह  मनहूस दिन था, की पूरा दिन गुजारने के बाद शाम के समय,प्रतिदिन की तरह  अपने मित्रों के साथ  रेलवे स्टेशन परिसर में घूमने गए थे ,और वहीं पर उन्हें अचानक सीने में दर्द हुआ कुछ उल्टियां हुई, नजाकत को समझ कर उन्हें नगर के साथ की अस्पताल में लाया गया, वहां से उन्हें इलाज के लिए नागपुर ले जाया जा रहा था, परंतु नगर से मात्र 10 किलोमीटर तक पहुंच कर ही उन्होंने अपने देह लीला समाप्त कर दी। यह मनहूस खबर सुनकर सारे नगर में मातम छा गया। लोग समझ नहीं पा रहे थे कि, यह सच्चाई है?  मगर आखिर में सच्चाई कोई स्वीकार करना ही होता है। आज उनकी चतुर्थ पुण्यतिथि है? सारा नगर उन्हें मिलकर अश्रु पूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता है? और उन्हें बड़े दुख के साथ याद करता है?

उन्हें याद करते हुए सहसा दिल से एक टीस उठती है, जो कहती है कि......

*हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पर रोती है,, बड़ी मुश्किल से होता है , चमन में दीदावर पैदा*

( लेख सैय्यद हमीद अली पत्रकार मुलताई)

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